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मिलेगें हम एक बार

रूबरू हुए हम बीते पल से सजते थे महफिल हमारे दम पर।। समय के चक्रवात ने कर दिया चकनाचूर संजोए उम्मीद सारे।। दफन हो गये सब ख्बाब हमारे रह गए सिर्फ अवसाद हमारे।। एक आस है बाकि कभी तो, कहीं तो मिलेगें हम एक बार।।  © इला वर्मा 19-01-2016

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ज्जबात

उनकी नजाकत से  बेकाबू हुऐ दबे ज्जबात मेरे दफन थे जो सालों से। © इला वर्मा  05/11/2015

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