बीती बातों का है
अंबार
अंबार
इजहार करने को
मन है तैयार
मन है तैयार
पर
किस छोर से
शुरू करें
शुरू करें
किस डोर को
ढीली करें
ढीली करें
समझ न पायें
हम।।
हम।।
विराम दिया, कुछ क्षण
लेखनी को
लगाम दिया
मन के आवेगों
को
को
व्याकुलता तो है
बहुत
बहुत
उमंगो को रंग
दें
दें
पर
किसमे कितना रंग भरें
तय कर पाना
है कठिन
है कठिन
इंतजार करते हैं
कुछ पल
कुछ पल
लेखनी को विराम
देते है,
देते है,
और कुछ पल ।।
© इला वर्मा 07-05-2016
One reply on “बातें”
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