यह एक जिंदगी की नहीं
यह हर नारी की हार है
फिर से पराजित हुई नारी
हामी भरते हैं हम अपनी आधुनिकता व विकास पर
क्रद नहीं करती समाज नारी की
जुल्म की शिकार होती रहती है नारी
दोषी टहराते हम उसको हमेशा
हजारों उंगली उठाते उसकी अदा व पहनावे पर
पर बोलो क्या सुरक्षित है नारी परदे के पीछे।।
(मन की आवाज)
….© इला 2015
2 replies on “मन की आवाज”
I do agree with each and every word you have written with a deep thought of yours.
Mohinder Paul Verma
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Thanks