हाय रब्बा
मजाक भी अच्छी कर लेते हो।
मेरे दिल का अजीज
बन गई मेरे दोस्त की नसीब।
गुस्ताखी थोङी,
मैंने ही की थी।
नौकरी बचाने के चक्कर में,
चंद रूपए,
सिनेमा घर के टिकट के बर्बाद न हो
मैंने ही भेजा दोनों को साथ।
क्या खुदाई,
दोनों ने निभायी मेरे संग।
कसमें खाई,
रहेगें संग सदा,
मैं उनकी शादी में,
बारातियों के स्वागत मे तन- मन से लगा रहा।
देखो, हँस न देना
थोङी सहानुभूति के आस में हूँ।।
© इला वर्मा 25/11/2015
2 replies on “देखो, हँस न देना”
He he he.. Nice one 🙂
hahaha
Thanks for the like.