ख्बाबों में वे,
दस्तक देते हैं रोज।।
आ जाओ अब,
मेरे आगोश में।
दूरियाँ,
सही नहीं जाती अब।
मुद्दत से कर रही हूँ,
इंतजार,
मुहुर्त,
उस पल का,
जब मैं “मैं” न रहूँ,
तुम “तुम” न रहो,
हो जाए “हम”
हर सफर हो साथ,
ये नजदीकियाँ।।
© इला वर्मा 21/11/2015
6 replies on “ये नजदीकियाँ”
Bahut badhiya…mazaa aa gaya padh kar!
Dhanyavaad Alok!
Nice…
Thanks
Badhiya shabd
धन्यवाद।