अंबर में लालिमा छाई,
फटने लगी पौ,
किरणों की उष्णता से,
पनप उठा लौ,
कण कण में,
जीवन का हुआ संचार,
प्रफुल्लित हुआ यह घर-संसार।।
कलियों ने ली अंगङाई,
रंग बिरंगी पंखूरी फैलायी,
मदमाती तितलियाँ नाच उठी,
चिङियों के कलरव से,
गूँज उठी बगिया में शहनाई।।
नमन है,
नतमस्तक है,
यह जग सारा,
कण-कण में सृजन करता
जीवन की अनमोल धारा।।
वरदान है,
अमूल्य है,
ये सू्र्य,
सींचता अपनी रौशनी से,
संचार कर,
संवार कर,
यह जग सारा।।
इला वर्मा 18/11/2015
7 replies on “जीवन की अनमोल धारा”
कलियों ने ली अंगङाई,
रंग बिरंगी पंखूरी फैलायी,
मदमाती तितलियाँ नाच उठी,
चिङियों के कलरव से,
गूँज उठी बगिया में शहनाई।।
बहुत सुन्दर शब्द !!
Thanks Yogi 🙂
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