ख्बाबों की लङियाँ,
जुुङती हमारी सांसों से,
उम्मीद बुनी हजारों,
हकीकत के किनारे,
जुङते-जुङते,
बिखर गये सारे।।
ये बांवरा मन,
फिर पीरोने लगा,
ख्बाबों की लङियाँ,
नई उम्मीद ,
नई किरण के संग।।
बेसमझ,
नादांन ये मन,
तरंग लेता हजारों,
जोङता नई ख्वाहिस से,
नये पुराने ख्बाबों को।।
दिल सेे यह है वादा
जाने नहीं देगें, इस बार
बीच मंझधार में,
करेगें,
अधुरे ख्बाबों को पूरा।।
© इला वर्मा 16/11/2015