तेरे आने के खुशी में
पलकें भींगी मेरी
थाम न पाया
आँसूओं का सैलाब
जब होने लगी
तू रूखसत।।
रोक न पाया तुझे
क्योंकि
तू अमानत थी
किसी और की।।
खिलते थे गुलिस्तां
मेरे मन के बगिया में
पर, तेरी जङे थी
किसी और के मल्कियत में।।
ख्वाहिस बस इत्ती सी
रहे जहाँ भी
झूमती रह खुशी से।।
© इला वर्मा 12-05-2016
8 replies on “ख्वाहिस बस इत्ती सी”
Daughters….what a poignant portrayal here…!
Thank u Dear 🙂
Badhiya !!
Dhanyavaad.
bahut sundar!
Thanks a lot Amitjee
dil ko chhu geya.
Thanks a lot.