तन भी भींगा
आनंद ले रहे
थे
कपङे उनके तन के
थे
कपङे उनके तन के
जो चिपकी जा
रही थी
रही थी
आनंदित हो
आहलाहित हो
उनके तन के
खुश्बू से।।
मैं भी कहाँ
शरीफ?
शरीफ?
खिङकियों के ओट
से
से
नजर टिकी
थी मेरी
उन पर
थी मेरी
उन पर
जिनकी हर कोशिश
अपने आप को
सिमटने की
हो रही थी
नाकाम।।
सिमटने की
हो रही थी
नाकाम।।
हाथ में लिए
दो प्याली चाय
करी हमने मिन्नतें बहुत
पी ले, हमारी
हाथों की
चाय
हाथों की
चाय
ठण्ड छू मंतर
हो जायेगा
हो जायेगा
तन में काबू
आ जाएगा।।
आ जाएगा।।
© इला वर्मा 26-06-2016
‘This post is a part of Write Over the Weekend, an initiative for Indian Bloggers by BlogAdda.’
9 replies on “बरसात #Poetry”
Wah. Bahut sundar rachna. 🙂
Dhanyavaad
Beautifully written 🙂
Thanks a lot.
So lovely Ila,going to visit your blog regularly now!
Thanks Sara…I m elated 🙂
https://thoughtsuncoveredblog.wordpress.com/, take time out for this.
Nice
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